सितारों से सुन्दर, चाँद सी हसीं
हवा सी साफ़, आसमान से ऊंची
मंदिर की आरती जैसी मीठी, दिए की रौशनी सी चमकती
फूलों जैसी प्यारी, भवरों सी चंचल
क्या कहूं, क्या न कहूं
क्यूं की तू तो हर कही ओर अनकही है
पाप या पुण्य, तेरा पापी, तेरा पुजारी
न इंसान, न राक्षस में तो बस तेरा तेरा
आस्था और ज़मीर से सजी मेरी मोहब्बत है
उसे प्यार का तोहफा समझ कर स्वीकार कर
देवी, रानी, अप्सरा, दासी, औरत का हर रूप तो तू है
ज़हर दे या अमृत लेकिन अब मुझे आबाद कर
मोक्ष और भटकने
के बीच वाली जो जगह है
उस दुनिया में मेरे साथ सेज सजा
ताकि भटकने में मोक्ष हो और मोक्ष में तू हो
में तो एक चिंगारी हूँ
चिता पर तो राख़ बनूँगा ही
हो सके तो मेरी ज़िन्दगी को प्यार का शोला बनादे
और इस अंगार से, अपना श्रृंगार कर
Saturday, October 25, 2008
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